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मूर्ति बनाने वाले कलाकारों का दावा:पीओपी मिलाए बगैर नहीं बन सकतीं मिट्टी की मूर्तियां
शीतल कुमार अक्षय. उज्जैन:जिला प्रशासन द्वारा भले ही पीओपी से गणेश मूर्तियां बनाने और बेचने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया हो, लेकिन विगत पच्चीस वर्षों से अधिक छोटी मूर्तियों को बनाने वाले कलाकारों का यह दावा है कि चाहे मिट्टी की ही मूर्ति क्यों न बनाई जाए, लेकिन जब तक इसमें कुछ अंश पीओपी नहीं मिलाया जाए, तब तक मिट्टी की मूर्ति सांचे में ढल ही नहीं सकती।
हालांकि यह बात अलग है कि बंगाली कॉलोनी में गणेश व दुर्गा, कालका देवी की मूर्तियां बनाने वाले बंगाली कलाकार पिछले कई वर्षों से सिर्फ मिट्टी ही मूर्तियां बनाने का काम कर रहे है। इन कलाकारों का कहना है कि हम पीओपी कभी नहीं मिलाते है, शुद्ध मिट्टी और गंगाजल का ही उपयोग करते है, ये मूर्तियां विशुद्ध रूप से पवित्र और पूजनीय रहती है।
बंगाली कॉलोनी में गंगा किनारे की मिट्टी से मूर्तियां
बंगाली कॉलोनी में नवदुर्गा उत्सव के लिए देवी की मूर्तियां बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। यहां गणेश मूर्तियां भी आर्डर पर बनाई गई है। बीते कई वर्षों से मूर्तियां बनाने वाले पश्चिम बंगाल के कलाकार पॉल ने बताया कि हमारे द्वारा गंगा नदी के किनारे से मिट्टी लाकर मूर्तियां बनाई जाती है। मिट्टी में गंगाजल और हरे चारे का भी उपयोग किया जाता है। नवदुर्गा उत्सव के लिए आयोजकों के आर्डर आने लगे है तथा आर्डर के अनुसार ही मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। पॉल का कहना है कि पीओपी से निर्माण सस्ता पड़ता है, लेकिन मिट्टी एकत्र करके लाना और उसे सांचे में ढालकर मूर्तियां बनाना कठिन होता है, बावजूद इसके पर्यावरण व धार्मिक दृष्टि से मिट्टी की मूर्तियां ही बीते तीस वर्षों से बनाने का सिलसिला जारी है।
आटे में नमक तो मिलाना ही पड़ता है
आरटीओ मार्ग पर गणेश मूर्तियों को बनाने वाले रघुनाथ ने बताया वह पिछले २५ वर्षों से मूर्तियां बनाने का काम कर रहे है। वह मूलत: राजस्थान के पाली जिले से है। रघुनाथ ने कहा जिस तरह से आटे में नमक मिलाए बगैर रोटी का स्वाद नहीं आता है, उसी तरह मिट्टी में भी पीओपी कुछ अंश तक मिलाना ही पड़ता है। कोरी मिट्टी बिखर जाती है, इसलिए सिर्फ मिट्टी की मूर्ति नहीं बनाई जा सकती।
क्या कहते हंै पुरातत्वविद्
पुरातत्वविद् डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित बताते हैं पीओपी से बनी मूर्तियां पर्यावरण ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी पूजनीय नहीं हैं। २०-२५ वर्षों पहले मिट्टी व रेत से ही मूर्तियां बनाई जाती थीं। आठ प्रकार की मूर्तियां होती हैं। इनमें चांदी, सोना, तांबा, रेत, मिट्टी, लकड़ी और पत्थर विशेष रूप से शामिल हंै। प्राचीन समय में धातुओं के साथ ही पत्थर तराशकर मूर्तियों का निर्माण किया जाता था।
क्या है प्लास्टर ऑफ पेरिस
रासायनिक रूप से पीओपी अर्धजलीय कैल्शियम सल्फेट है। इसे प्लास्टर ऑफ पेरिस कहते हैं। क्योंकि यह जिप्सम से प्राप्त होता है जो मुख्यतया पेरिस में पाया जाता है।
यह श्वेत चूर्ण है, जब इसे जल के साथ मिलाया जाता है तो जिप्सम के क्रिस्टल बनते हैं तथा कठोर द्रव्यमान में व्यवस्थित हो जाते हैं। जमने का प्रक्रम ऊष्माक्षेपी होता है अर्थात ऊष्मा मुक्त होती है। जमने का प्रक्रम सोडियम क्लोराइड द्वारा उत्प्रेरित हो सकता है, जबकि यह बोरेक्स या एलम (फिटकरी) द्वारा मंद गति से होता है।
जब प्लास्टर ऑफ पेरिस को 473 डिग्री पर गर्म किया जाता है तो यह निर्जलीय कैल्शियम सल्फेट बनाता है जो मृत ज्वलित प्लास्टर ऑफ पेरिस कहलाता है। इसमें जमने का गुण नहीं होता है। क्योंकि यह जल से पुन: संयोग नहीं करता है।
यह टूटी हुई हड्डियों पर प्लास्टर करने में प्रयुक्त होता है तथा यह अपने स्थान से हटी हुई हड्डियों को उनके उचित स्थान में व्यवस्थित करता है।
यह खिलौने सजावटी सामान बनाने में प्रयुक्त होता है।
यह मूर्तियों, खिलौनों, शल्य उपकरणों के लिए सांचे बनाने में प्रयुक्त होता है।
यह सतह को चिकनी बनाने के लिए तथा दीवारों और छतों पर अलंकृत चित्राण करने में प्रयुक्त होता है।
यह लैब में उपकरणंों में वायु अंतराल को बंद करने हेतु वायु रोधी के रूप में प्रयुक्त होता है।